अमित यादव की कलम से..
हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में, हम शब्दों की दीप-शिखा हैं अंधियारे चौबारों में हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं। डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं। उपर्यक्त पंक्तिया सिवान के चर्चित और निर्भीक पत्रकार स्व. राजदेव रंजन पर सटीक बैठती है। 13 मई 2016 की वह मनहूस शाम जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के सच्चे प्रहरी राजदेव रंजन की बीच शहर में गोली मार हत्या कर दी गयी। इसके साथ ही सिवान के पत्रकारिता जगत का एक अध्याय समाप्त हो गया। आज भी लोगो के जुबा से राजदेव रंजन के निर्भीक पत्रकारिता, सच को सच कहने की हिम्मत और अपराधियों के काले करतूतों को जनता के सामने लाने वाली बाते यदा-कदा सुनने को मिल ही जाती है लेकिन अभी तक उनके परिजनों को इंसाफ मिलना बाकी है।
निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के मिसाल राजदेव रंजन की हत्या से बिहार की राजनीति हिल गई थी।दरअसल, इस मामले में सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन पर भी आरोप लगे हैं और इसकी सुनवाई हो रही है। जब ये हत्या हुई तब बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव की गठजोड़ के महागठबंध की सरकार चल रही थी। ऐसे में विपक्ष में बैठी बीजेपी ने जमकर भुनाया और खूब राजनीति हुई।
बता दें कि राजदेव रंजन हत्याकांड मामले की दागी एमपी/ एमएलए के विशेष कोर्ट में सुनवाई हो रही है। बीते 6 मई को मामले में सुनवाई थी। लॉकडाउन के कारण एक बार फिर अभियोजन पक्ष के 18 वें गवाह का बयान दर्ज नहीं हो सका। सीबीआई के प्रतिनिधि व गवाह कोर्ट में हाजिर नहीं हो सके। इस तरह लगातार चौथी तिथि पर गवाही नहीं हो सकी। वहीं, दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद आरोपित पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन, भागलपुर जेल में बंद अजरुद्दीन बेग उर्फ लड्डन मियां के अलावा मुजफ्फरपुर जेल में बंद पांच आरोपितों की पेशी कोर्ट के समक्ष नहीं हो सकी। मोबाइल ऐप के माध्यम से बचाव पक्ष के अधिवक्ता शरद कुमार सिन्हा सुनवाई में शामिल हुए। विशेष कोर्ट के जज विरेंद्र कुमार ने 18 वें गवाह के बयान के लिए आगामी 20 मई की तिथि निर्धारित की है। इससे पहले भी लॉकडाउन के कारण 18 मार्च, एक अप्रैल व 22 अप्रैल को सुनवाई के दौरान गवाह कोर्ट में हाजिर नहीं हो सका था।